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लेखनी कहानी -21-Aug-2024

शीर्षक - मेरा भाग्य और कुदरत के रंग..... एक सच **************************** आज हम सभी मेरा भाग्य और कुदरत के रंग में एक सच पढ़ रहे हैं हम सभी इंसान हैं और मानवता को समझते हैं परंतु किराएदार किराए की जिंदगी किराए की मां किराये की बहन ऐसे शब्द हमने फिल्मों में या किसी किताबों में किसी संवाद में पढ़ें देखें सुने है। बस हम सभी यह नहीं जानते या जानते भी हैं। किराएदार हम सभी है । मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच में आप पाठक सोच रहे होंगे। सभी जानते हैं किराएदार परंतु सब तरह के किराएदार होते हैं आपने कभी यह सुना है कि आप अपने शरीर के भी किराएदार हैं सोचें और समझे मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच के साथ हम सभी शरीर में किराएदार के रूप में रहते हैं इस शरीर के लिए हम दिन रात मेहनत करते हैं और शरीर के साथ ही हम सहयोग नहीं करते हैं। आओ हम सभी मेरा भाग्य और कुदरत के रंग में एक सच पढ़ते हैं। आनंद एक प्राइवेट फैक्ट्री में नौकरी करता है और वह अपने परिवार में एक मात्र बेटा था और उसके परिवार में माता-पिता उसके गुजर चुके थे। सभी रिश्तेदार उसको समय के साथ साथ बेसहारा छोड़ कर चले गए थे।तब आनंद का पालन पोषण उसकी पड़ोस की मुंह बोली बहन और जीजा ने किया था और आनंद परिस्थितियों के साथ समझौता करके अपना गुजारा बचपन से स्वाभिमानी और खुदगर्ज होने के साथ-साध खुद ही कर लेता था । उसकी बहन और जीजा जी उसे बहुत रोकती थी। कि नहीं आनंद कोई बात नहीं हम तेरे साथ हैं परंतु आनंद अपने दिमाग और सोच का अलग था। और एक कार एक्सीडेंट में उसके जीजा जी का देहांत हो चुका था। उसकी बहन के कोई औलाद न थी । और वह एक बांझ का जीवन जी रही थी। अब आनंद को मुंह बोली बहन का भी ख्याल रखना था परंतु मुंह बोली बहन आनंद से उम्र में 8 साल बड़ी थी और जब आनंद मुंह बोली बहन के साथ रहने लगा तब आज पड़ोस के लोगों ने दोनों के रिश्ते पर गलत बातें करने लगे। आनंद ने भी एक दिन अपनी मुंह बोली बहन से कहा कि अब मेरी भी स्थिति ऐसी है और आपकी भी परिस्थिति और यह दुनिया वालों का मुंह तो बंद करना ही होगा तब क्यों ना मैं आपसे विवाह कर लूं । यह सुनकर मुंह बोली बहन बोली यह तुम क्या कह रहे हो तुम उम्र में भी छोटे हो । और मैं तुम्हारे मुंह वाली बहन हूं ऐसा कैसे सोच सकते हो । आधुनिक समाज और एक नारी का जवान उम्र में बेसहारा होना फिर तरह-तरह के लोगों की नजरों से बचने के लिए आनंद कहता है। मुंह वाली बहन हो तो आप देखे बहुत से समुदाय में अगर किसी की इज्जत और आबरू बचाने के लिए जीवन को निस्वार्थ भाव हम सहयोग करें । तो ईश्वर भी शायद हमें माफ करता हैं। उसकी बात को मुंह बोली बहन तुम जानते हो आनंद में एक बांझ भी हूं और तुम अगर मेरे साथ विवाह कर लोगे तब तुम्हारी जिंदगी भी सही नहीं हो पाएगी । और आने वाले कल में तुम औलाद का मुंह देख नहीं पाओगे ।आनंद एक आधुनिक पढ़ा लिखा नौजवान था वह अपने मुंह बोली बहन से कहता है। ऐसी बात नहीं है आज विज्ञान और इंसान ने बहुत तरक्की कर ली है तब दोनों एक निर्णय करते हैं कि अगर हम एक दूसरे से विवाह करेंगे । तो इस शहर में नहीं रहेंगे और आनंद और मुंह बोली बहन को वह दोनों शहर से दूसरे शहर में चले जाते हैं वहां जाकर आनंद मुंह बोली बहन को एक नाम देता है आनंदा और आनंद की आनंदा पत्नी बन चुकी होती है । और दोनों एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते है अब आनंदा और आनंद एक दूसरे की जिंदगी में बहुत खुश होते हैं । और एक दिन आनंदा आनंद को बताती है कि तुम पिता बनने वाले हो आनंद बहुत खुश हो जाता है और आनंद आनंदा से कहता है कि अब तुम्हें बीते कल को सोचने की जरूरत नहीं है अब आप यह सोचो मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच होते हैं। जीवन में समय बहुत बलवान होता है। आनंदा कुछ महीनो के बाद एक बेटी को जन्म देती है उसका नाम आनंद और आनंदा के नाम के साथ जोड़कर आनंदी रखते हैं और आनंद और आनंदा बहुत खुश होते हैं। मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच तो यही है कि जीवन में अगर हम किसी को सहयोग दें तो उसका साथ निभाएं ना कि उसके साथ केवल सांसारिक संसर्ग को ध्यान और लगन रखें । आनंदा आनंद के साथ आज के समय में जीवन खुशहाली से जी रही थी । और अपनी बेटी आनंदी को सही रूप से पालन पोषण कर रही थी आनंद अब धीरे-धीरे अपने काम में व्यस्त हो जाता है और वह आनंदी और आनंद को समय कम दे पता है क्योंकि आनंद अब आनंदी के साथ ज्यादा समय बिताती थी। आनंद को इस बात से कोई गिला शिकवा नहीं था और वह आनंदी की देखने के लिए उसके जीवन की खुशहाली के लिए रात दिन मेहनत कर रहा था क्योंकि आज के दौर में एक बच्चे की परवरिश करना बहुत मुश्किल होता है एक दिन आनंद आनंद से पूछता है कि क्या हम एक बच्चे के साथ ही जीवन बिताएंगे तब आनंद कहता है तुम्हारी इच्छा हो तो सोचते हैं तब आनंद रहती है क्या बेटी समाज के लिए बेटे का काम नहीं कर सकती क्योंकि आनंद की उम्र आनंद से बड़ी थी आनंद इस बात को समझता था आनंद कहता है आनंद हमारी बेटी ही हमारे जीवन का बेटा है और आज आधुनिक समय में बेटियां बेटों से कोई भेदभाव नहीं करते हैं। हम आज केवल इस बात को ध्यान रखें कि हम जिस बच्चे को पैदा करें । उसकी परवरिश एक अच्छे माता-पिता की तरह कर सकते हैं । यह तो हमारी सोच और मन भाव की बात है बेटा बेटी अगर बेटा होगा तब बेटी भी होगी और बेटा होगा तो बेटी होगी आनंदा से कहता है आनंद क्या हम और तुम किसी के बेटा बेटी है। और आनंद आनंदा से कहता है मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच समय होता है न बेटा न बेटी भेदभाव जीवन में न किसी का रहता है। लेखक एक समाज का दर्पण होता है और शब्द उसकी शैली होती हैं परंतु हमारे समाज में किसको क्या पसंद है यह कहानी की साथ-साथ प्रतिक्रिया पर निर्भर करते हैं।


नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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1 Comments

hema mohril

07-Feb-2025 07:03 AM

v nice

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